Bihar Voter List 2025: जन्म तिथि के आधार पर दस्तावेज जमा करने का नया नियम, बहू को मायके से लाने होंगे ये कागजात

Rohit Prajapati
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बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची को अपडेट करने के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने एक नया और महत्वपूर्ण नियम लागू किया है। इस नियम के तहत मतदाताओं को अपनी जन्म तिथि के आधार पर दस्तावेज जमा करने होंगे, जिसमें कुछ मामलों में माता-पिता के दस्तावेज भी शामिल हैं।

विशेष रूप से, घर की बहुओं को अपने मायके से माता-पिता के दस्तावेज लाने होंगे। हालांकि, जिन मतदाताओं का नाम 2003 की मतदाता सूची में दर्ज है, उन्हें केवल गणना प्रपत्र और पासपोर्ट साइज फोटो जमा करना होगा। यह प्रक्रिया 25 जून 2025 से शुरू हो चुकी है और 30 सितंबर 2025 को अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित होगी।

इस अभियान का उद्देश्य मतदाता सूची की शुद्धता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना है, लेकिन इसने कई सवाल और विवाद भी खड़े किए हैं। आइए, इस नए नियम के हर पहलू को विस्तार से समझते हैं।

नए नियम का उद्देश्य और महत्व

भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान शुरू किया है, ताकि मतदाता सूची को पूरी तरह से अपडेट और पारदर्शी बनाया जा सके। इस प्रक्रिया के तहत सभी मतदाताओं को गणना प्रपत्र भरना अनिवार्य है, साथ ही एक पासपोर्ट साइज फोटो जमा करना होगा। इसके अलावा, जन्म तिथि के आधार पर 11 वैध दस्तावेजों में से एक या अधिक दस्तावेज जमा करने होंगे। यह नियम खास तौर पर उन मतदाताओं पर लागू होता है, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं है।

इस अभियान का मुख्य उद्देश्य बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव 2025 के लिए एक सटीक और विश्वसनीय मतदाता सूची तैयार करना है। निर्वाचन आयोग का कहना है कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21(3) और मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के तहत लागू की गई है। इसके जरिए संदिग्ध विदेशी नागरिकों की पहचान भी की जाएगी, जिससे मतदाता सूची में केवल पात्र भारतीय नागरिकों का नाम शामिल हो।

जन्म तिथि के आधार पर दस्तावेजों की आवश्यकता

नए नियम के तहत मतदाताओं को अपनी जन्म तिथि के आधार पर अलग-अलग दस्तावेज जमा करने होंगे। यह प्रक्रिया निम्नलिखित तरीके से लागू होगी:

  • 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे मतदाता: इन मतदाताओं को केवल गणना प्रपत्र, पासपोर्ट साइज फोटो और 11 वैध दस्तावेजों में से एक दस्तावेज (जैसे जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट, या शैक्षिक प्रमाण पत्र) जमा करना होगा।
  • 1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे मतदाता: इन्हें गणना प्रपत्र और फोटो के साथ-साथ अपने माता या पिता में से किसी एक का जन्म प्रमाण पत्र या समकक्ष दस्तावेज जमा करना होगा।
  • 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे मतदाता: इन मतदाताओं को अपने, माता और पिता तीनों के दस्तावेज जमा करने होंगे।
  • घर की बहुओं के लिए विशेष नियम: घर की बहुओं को अपने सास-ससुर के दस्तावेजों के बजाय अपने मायके के माता-पिता के दस्तावेज जमा करने होंगे। यह नियम खास तौर पर विवाहित महिलाओं के लिए लागू है, जिन्हें अपने मायके से संबंधित दस्तावेज लाने होंगे।
  • 2003 की मतदाता सूची में नाम वाले मतदाता: जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में हैं, उन्हें कोई अतिरिक्त दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं है। उन्हें केवल गणना प्रपत्र और पासपोर्ट साइज फोटो जमा करना होगा।

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प्रक्रिया और समयसीमा

निर्वाचन आयोग ने इस प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए कई कदम उठाए हैं। 25 जून से 3 जुलाई 2025 तक बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) घर-घर जाकर प्री-फिल्ड गणना प्रपत्र बांट चुके हैं। मतदाताओं को यह प्रपत्र 25 जुलाई तक भरकर अपने बीएलओ को जमा करना होगा। इसके बाद:

  • 1 अगस्त 2025: ड्राफ्ट मतदाता सूची का प्रकाशन होगा।
  • 1 अगस्त से 1 सितंबर 2025: मतदाता इस दौरान दावे और आपत्तियां दर्ज कर सकेंगे।
  • 30 सितंबर 2025: अंतिम मतदाता सूची का प्रकाशन होगा।

इस प्रक्रिया में बिहार के 7.89 करोड़ से अधिक मतदाताओं को कवर किया जा रहा है, जिसमें से 4.96 करोड़ मतदाताओं के नाम 2003 की मतदाता सूची में पहले से मौजूद हैं। इन मतदाताओं को केवल अपने विवरण सत्यापित करने होंगे। इसके लिए निर्वाचन आयोग ने 77,895 बीएलओ और 20,603 नए बीएलओ तैनात किए हैं, साथ ही 4 लाख स्वयंसेवकों की मदद ली जा रही है।

विवाद और विपक्ष की चिंताएँ

इस नए नियम ने बिहार में सियासी हलचल मचा दी है। विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस, राजद, और अन्य इंडिया ब्लॉक की 10 पार्टियों ने इसे एनआरसी से जोड़कर आलोचना की है। उनका कहना है कि यह प्रक्रिया गरीबों, दलितों, आदिवासियों, और ओबीसी समुदायों के लिए मताधिकार से वंचित करने की साजिश है। विपक्ष के अनुसार, बिहार में 26.54% लोग टीन या खपरैल की छतों के नीचे रहते हैं, और केवल 45-50% युवा मैट्रिक पास हैं। ऐसे में जन्म प्रमाण पत्र या अन्य दस्तावेज जुटाना उनके लिए मुश्किल हो सकता है।

विपक्षी नेता तेजस्वी यादव ने भी सवाल उठाया है कि जब आधार कार्ड को मान्यता नहीं दी जा रही है, तो गरीब लोग इतने कम समय में दस्तावेज कैसे जुटाएंगे। उनका कहना है कि 2003 में भी मतदाता सूची तैयार करने में दो साल लगे थे, जबकि अब केवल 25 दिन का समय दिया गया है।

लाभ और चुनौतियाँ

इस अभियान के कई लाभ हैं। यह मतदाता सूची को और अधिक पारदर्शी और विश्वसनीय बनाएगा। 2003 की मतदाता सूची को ऑनलाइन उपलब्ध कराने से 4.96 करोड़ मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जिससे प्रक्रिया में आसानी होगी। साथ ही, संदिग्ध विदेशी नागरिकों की पहचान कर उनके मामलों को नागरिकता अधिनियम के तहत उचित अधिकारियों को सौंपा जाएगा।

हालांकि, चुनौतियाँ भी कम नहीं हैं। ग्रामीण और गरीब समुदायों के पास जन्म प्रमाण पत्र या अन्य वैध दस्तावेजों की कमी हो सकती है। खासकर, बहुओं के लिए मायके से दस्तावेज लाना एक अतिरिक्त बोझ हो सकता है। इसके अलावा, कम समयसीमा और जागरूकता की कमी से कई पात्र मतदाता इस प्रक्रिया से छूट सकते हैं।

भविष्य का प्रभाव

यह नया नियम बिहार के विधानसभा चुनाव 2025 को और अधिक निष्पक्ष और पारदर्शी बनाने में मदद कर सकता है। हालांकि, अगर इसे ठीक ढंग से लागू नहीं किया गया, तो लाखों मतदाता अपने मताधिकार से वंचित हो सकते हैं। निर्वाचन आयोग को चाहिए कि वह इस प्रक्रिया को और अधिक सरल बनाए और ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए। साथ ही, दस्तावेजों की अनुपलब्धता वाले मतदाताओं के लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए।

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